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निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर, अन्त में दिये गये प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखिए-

पहला सुख निरोगी काया अर्थात् सबसे बड़ा सुख स्वस्थ शरीर है। अस्वस्थ व्यक्ति न अपना भला कर सकता है, न घर का, न समाज का और न ही देश का।

प्राचीनकाल से ही उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्यायाम के महत्व को पहचाना गया है। बड़े-बड़े मनीषियों ने व्यायाम को उत्तम स्वास्थ्य का आधार बताया है।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूल आधार स्वास्थ्य है। जहाँ तक इस सफलता की बात करें तो मानव-जीवन की सफलता भी इसी सूत्र में छिपी है।

बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य तथा सफलता के लिए परिश्रम भी स्वस्थ शरीर से ही सम्भव होता है। अतः स्वस्थ मस्तिष्क तथा स्वस्थ बुद्धि के लिए हमें शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए।

स्वास्थ्य और सफलता का गहरा नाता है। सफलता के लिए व्यक्ति को परिश्रम करना आवश्यक है और अस्वस्थ व्यक्ति परिश्रम नहीं कर सकता। स्वस्थ मस्तिष्क से ही मनुष्य में सोचने -विचारने की शक्ति आती है, वह अपना हानि-लाभ सोच सकता है। जिस देश के व्यक्ति कमजोर व अस्वस्थ होंगे वह देश कभी उन्नत नहीं हो सकता। एक विद्यार्थी तभी श्रेष्ठ विद्यार्थी होगा जब वह स्वस्थ होगा। चाहे विद्यार्थी हो या अध्यापक, व्यापारी हो या वकील, कर्मचारी हो या शासक, नौकर हो या स्वामी, प्रत्येक को अपने कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए स्वस्थ होना आवश्यक है।

इसं स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मनीषियों ने, वैद्यों-डॉक्टरों ने तथा योगी-महात्माओं ने अनेक साधन बताए हैं– जिसमें शुद्ध वायु, प्रातः भ्रमण, संयमित जीवन, सच्चरित्रता, निश्चिन्तता, सन्तुलित भोजन, गहरी नींद तथा व्यायाम प्रमुख है। इनमें भी व्यायाम ही उत्तम स्वास्थ्य की मूल जड़ है। आलस्य रूपी महारिपु से छुटकारा पाने के लिए भी व्यायाम को अपनाना आवश्यक है। व्यायाम व्यक्ति को चुस्त-दुरुस्त रखता है। व्यायाम शारीरिक व बौद्धिक दो प्रकार का होता है। शारीरिक व्यायाम के लिए दण्ड-बैठक, खुली हवा में दौड़ लगाना, तैरना, घुड़सवारी करना, कुश्ती लड़ना तथा विभिन्न प्रकार के खेल, जैसे- हॉकी, कबड्डी, रस्साकसी, बैडमिण्टन आदि खेले जा सकते हैं। बौद्धिक व्यायाम के अन्तर्गत शब्द पहेलियाँ, बुद्धिपरीक्षण के प्रश्न तथा शतरंज आदि खेल आते हैं।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के कारण ही आज व्यक्ति फिर योग की ओर मुड़ रहे हैं। योगासनों का महत्व बढ़ता जा रहा है। इन योगासनों के द्वारा शरीर की माँसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। साथ ही मनुष्य को एकाग्रचित्तता की शक्ति प्राप्त होती है। व्यायाम करने व योगासनों से मनुष्य जल्दी बूढ़ा नहीं होता। उसकी पाचन क्रिया ठीक रहती है, रक्त-संचार नियमित होता है जिससे मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। मनुष्य में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का समावेश होता है जो मनुष्य की सफलता की कुंजी है।

जो सुखों का उपभोग करना चाहता है तथा जीवन में सफलता रूपी कुंजी पाना चाहता है उसे स्वास्थ्य नियमों का पालन करना चाहिए।

(a) ‘पहला सुख निरोगी काया’ से आप क्या समझते हैं? स्वास्थ्य नियमों का पालन करने से क्या लाभ होता है?

(b) स्वास्थ्य और सफलता का आपस में गहरा नाता किस प्रकार है?
(c) स्वास्थ्य रक्षा के लिए किसने और क्या साधन बताए? 

(d) शारीरिक व बौद्धिक व्यायाम से आप क्या समझते हैं? ये किस प्रकार किये जाते हैं?

(e) योग साधनों का महत्व क्यों बढ़ रहा है तथा इस योग साधना के क्या लाभ हैं?

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(a) ‘पहला सुख निरोगी काया’ से तात्पर्य है मनुष्य शरीर का। स्वस्थ और निरोगी होना। यदि शरीर में कोई रोग नहीं है और उसे शुद्ध और पौष्टिक आहार मिल रहा है तो वह स्वस्थ रहेगा। स्वस्थ जीवन ही संसार में पहला सुख बताया गया है। निरोगी व्यक्ति ही प्रसन्न रहता है और स्फूर्तिपूर्वक अपना काम कर सकता है। स्वस्थ व्यक्ति ही अपना, घर का, समाज का और देश का भला कर सकता है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूल आधार स्वास्थ्य ही है। मानव जीवन की सफलता भी इसी सूत्र में सन्निहित है। श्रेष्ठ बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य तथा सफलता के लिए परिश्रम भी स्वस्थ शरीर से ही सम्भव है। अतः स्वस्थ मस्तिष्क तथा स्वस्थ बुद्धि के लिए हमें शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए।

(b) स्वास्थ्य और सफलता का गहरा रिश्ता है। कार्य की सफलता के लिए मनुष्य को परिश्रम करना आवश्यक है, जबकि अस्वस्थ व्यक्ति परिश्रम नहीं कर सकता। स्वस्थ मस्तिष्क ही मनुष्य में सोचने-विचारने की शक्ति और हानि-लाभ का विचार देता है। जिस देश के नागरिक कमजोर और अस्वस्थ होंगे, वह देश कभी उन्नति नहीं कर सकता। श्रेष्ठ विद्यार्थी के लिए उसका स्वस्थ होना आवश्यक है। व्यक्ति के कार्य का कोई भी क्षेत्र हो, उसे उसके कार्य में सफलता पाने के लिए उसका स्वस्थ होना आवश्यक है।

(c) स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मनीषियों ने, वैद्य-डॉक्टरों ने तथा योगी-महात्माओं ने अनेक साधन बताए हैं- जैसे शुद्ध वायु, प्रातः कालीन भ्रमण, संयमित जीवन, सच्चरित्र होना, निश्चिन्तता, सन्तुलित भोजन, गहरी नींद तथा व्यायाम। इनमें से व्यायाम ही उत्तम स्वास्थ्य की संजीवनी है। आलस्य शरीर का महान् शत्रु है। इससे छुटकारा पाने के लिए व्यायाम करना अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम व्यक्ति को चुस्त-दुरुस्त और प्रसन्नचित्त रखता है।

(d) शारीरिक व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है और बौद्धिक व्यायाम से मस्तिष्क की बुद्धि विकसित और तीव्र होती है। शारीरिक व्यायाम के लिए दण्ड-बैठक, कुश्ती लड़ना, खुली हवा में दौड़ना, साइकिल चलाना, तैरना, घुड़सवारी करना तथा विभिन्न प्रकार के खेल, जैसे – हॉकी, कबड्डी, रस्साकसी, बैडमिण्टन, बालीबॉल आदि खेले जाते हैं। बौद्धिक व्यायाम के अन्तर्गत शब्द पहेलियाँ, बुद्धि परीक्षण के प्रश्न तथा शतरंज, लूडो आदि खेल आते हैं।

(e) स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के लिए आज व्यक्ति फिर योग की ओर अग्रसर हो रहे हैं। योगासनों का महत्व बढ़ता जा रहा है। योगासनों के द्वारा शरीर की माँसपेशियाँ पुष्ट होती हैं तथा मनुष्य को एकाग्रता की शक्ति प्राप्त होती है। व्यायाम करने व योगासन करने से मनुष्य का बुढ़ापा जल्दी नहीं आता। उसकी पाचन क्रिया ठीक रहती है और रक्त संचार नियमित रहता है जिससे मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है। मनुष्य में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का समावेश होता है जो उसकी सफलता की कुंजी है।

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