अध्ययन की किसी अन्य पद्धति की भॉति सहभागी प्रेक्षण की कुछ खूबियाँ भी हैं तथा कुछ कमियाँ भी एक पद्धति के रूप में सहभागी प्रेक्षण की प्रमुख खूबियाँ निम्नलिखित हैं-
⦁ सूक्ष्म रूप से घटना का अध्ययन–सहभागी प्रेक्षण में अनुसंधानकर्ता समुदाय के सदस्यों के साथ घुल-मिल जाता है, इसलिए यह प्रविधि सामाजिक घटनाओं का प्रत्यक्ष तथा सूक्ष्म रूप से गंभीरता से अध्ययन करती है। प्रेक्षणकर्ता को समूह की सदस्यता ग्रहण करने में ही अनेक महीने लग जाते हैं। वह घटनाओं को धैर्यपूर्ण ढंग से समझ सकता है।
⦁ समूह के सदस्यों का सहयोग–सहभागी प्रेक्षण में अनुसंधानकर्ता समूह में काफी देर तक रहता है तथा उसका सदस्य बन जाता है। इसलिए अध्ययन-कार्य में उसे समूह के सदस्यों का सहयोग प्राप्त हो जाता है।
⦁ विश्वसनीय सूचनाओं की प्राप्ति-सहभागी प्रेक्षण में निरीक्षणकर्ता व्यक्तिगत रूप से समुदाय का सदस्य रहता है। इसलिए समुदाय से संबंधित जो भी सूचनाएँ’ वह प्राप्त करता है वे विश्वसनीय होती हैं।
⦁ विधि की सरलता सहभागी प्रेक्षण विधि किसी समुदाय या समूह का अध्ययन करने की | सरलतम विधि है, जिमसें किसी प्रकार का कोई अपव्यय नहीं होता।
⦁ सूचनाओं की परीक्षा–सहभागी प्रेक्षण में जो सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं, उनकी परीक्षा कभी भी की जा सकती है। इसमें केवल सूचनाओं का संकलन ही सम्भव नहीं है, अपितु उनके अर्थ के संबंध में भी जानकारी प्राप्त होती है।
⦁ रीति-रिवाजों का ज्ञान–सहभागी प्रेक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले समूह के सदस्यों के बीच जाकर बस जाता है, जिससे समूह के रीति-रिवाजों का अनुसंधानकर्ता को पूरा-पूरा ज्ञान हो जाता है। यह ज्ञान उसे सामाजिक घटनाओं को समझने में सहायता प्रदान करता है।
एक पद्धति के रूप में सहभारी प्रेक्षण की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं-
⦁ व्ययशील पद्धति–सहभागी प्रेक्षण एक खर्चीली पद्धति है, जिसमें अनुसंधानकर्ता को समूह का सदस्य बनने के लिए काफी समय सदस्यों का विश्वास प्राप्त करने में ही लग जाता है। अनुसंधानकर्ता को समस्या का अध्ययन करने के लिए अधिक समय और धन लगाना पड़ता है।
⦁ अनुसंधानकर्ता पर निर्भरता-सहभागी प्रेक्षण की सफलता अनुसंधानकर्ता पर आधारित होती है; क्योंकि इसमें केवल एक ही व्यक्ति अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करता है। यदि वह समूह के सदस्यों का ठीक प्रकार से विश्वास प्राप्त नहीं कर पाता तो वह अपने उद्देश्य में पूरी तरह से सफल नहीं हो सकता।
⦁ वस्तुनिष्ठता का अभाव-सहभागी प्रेक्षण में तटस्थता का अभाव पाया जाता है, क्योंकि अनुसंधानकर्ता स्वयं ही समूह का सदस्य बन जाता है। वह निष्पक्ष भाव से समस्या का अध्ययन नहीं कर सकता। सहभागी प्रेक्षणकर्ता का समूह के साथ अनेक प्रकार का भावात्मक लगाव भी हो जाता है जो अध्ययन एवं प्रेक्षणकर्ता की वस्तुनिष्ठता को कम कर देता है।
⦁ समस्याओं के विश्लेषण का अभाव-सहभागी प्रेक्षण में अनुसंधानकर्ता समुदाय का सदस्य। होने के कारण समुदाय की अनेक समस्याओं से परिचित हो जाता है, इसलिए बहुत-सी समस्याओं का विश्लेषण ही नहीं कर पाता। अनुसंधानकर्ता का प्रेक्षण उचित स्तर को नहीं रहता; क्योंकि वह समूह की विपत्तियों, प्रसन्नताओं तथा लड़ाई-झगड़ों से निरंतर प्रभावित होता रहता है, इसलिए उनका विश्लेषण भी नहीं कर पाता।
⦁ पूर्ण सहभागिता संभव नहीं-बाहरी सदस्य के लिए प्रेक्षणित समूह अथवा समुदाय में पूर्ण रूप से भाग लेना सम्भव नहीं है क्योंकि बाहरी व्यक्ति होने के नाते उसे सदा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। भिन्न संस्कृति होने के कारण भी समुदाय के सदस्यों में घुल-मिल जाना तथा ‘दिल की धड़कनें एक कर लेना’ सरल नहीं है। कुछ विद्वानों का कहना है कि समूह के सदस्यों * के विभिन्न प्रकार के कार्यों में सहायता करके, उनको अनिवार्य वस्तुएँ बाँटकर, उन्हें प्रभावित करके उनका विश्वास प्राप्त किया जा सकता है। परंतु यदि ऐसा किया जाता है तो प्रेक्षणकर्ता वास्तविक व्यवहार का अध्ययन ने करके कृत्रिम व्यवहार का अध्ययन ही कर पाएगा, क्योंकि इसमें पक्षपातपूर्ण अध्ययन हो सकता है।
⦁ अनेक परिस्थितियों में सहभागिता असंभव–अनेक परिस्थितियाँ ऐसी हैं, जिनका सहभागी प्रेक्षण द्वारा अध्ययन नहीं किया जा सकता; क्योंकि प्रेक्षणकर्ता के लिए उनकी सदस्यता ग्रहण करना संभव नहीं है। उदाहरणार्थ-अगर हमें डाकूओं का अध्ययन करना है अथवा जेल के कैदियों या पुलिस के अफसरों अथवा लोकसभा के सदस्यों का अध्ययन करना है तो न तो हम डाकू बन सकते हैं, न जेल के कैदी, न पुलिस अफसर और न लोकसभा के सदस्य। इसलिए सहभागी प्रेक्षण का प्रयोग केवल सीमित परिस्थिति में ही किया जा सकता है।
⦁ लघु समूहों का अध्ययन–सहभागी प्रेक्षण तभी प्रभावशाली हो सकता है जबकि समूह अथवा | समुदाय का आकार छोटा हो। विस्तृत क्षेत्र होने पर इस प्रविधि का प्रयोग करना संभव नहीं है; अतः क्षेत्र की दृष्टि से भी इसकी उपयोगिता सीमित है।
⦁ भूमिका संतुलन की समस्या सहभागी प्रेक्षण में प्रेक्षणकर्ता को एक वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता तथा समूह के सक्रिय सदस्य की दो भिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। ऐसा अनिवार्य नहीं है कि वह इन विपरीत भूमिकाओं में संतुलन रख ही पीएं। यदि संतुलन नहीं रख पाता तो अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
उपर्युक्त कमियों के बावजूद सहभागी प्रेक्षण प्राचीन समाजों तथा जनजातियों के अध्ययन में लोकप्रिय तथा सबसे अधिक प्रचलित प्रविधि बनी हुई है।